Ho Qubool Ab Hamara Vidaye Salaam

Noha

हो क़ुबूल अब हमारा विदाई सलाम
मुस्तफा की निशानी जहाँ के इमाम

साल भर के लिए फिर निदामत रही
रोने वालो के सीनों मे हसरत रही
बाकि रूमाले ज़हरा की खिदमत रही
ऐ ग़रीबुल वतन ऐ शहे नेक नाम

ताज़ियत पेश करते हैं अकबर की हम
दिल मे रखते है अब्बासे गाज़ी का ग़म
यादगारे अली इब्ने खैरुल उमम
पुसरा देने को आये है मिलकर ग़ुलाम

ग़म नसीबो को और ग़म के मारों को याद
शाहज़ादी की आँखों के तारों को याद
करना ज़ैनब के दोनों दुलारो को याद
सोगवारों की जानिब से कुल के इमाम

दस मुहर्रम की आफत पा गिरया हुऐ
दोस्तों की मुसीबत पा गिरया हुऐ
नासिरों की शहादत पा गिरया हुऐ
बन गए ग़म का मरहम ये आसूं तमाम

हो शमीम उनके रोज़े पा जब भी गुज़र
अर्ज़ कर देना पैग़ाम बा चश्मे तर
फिर मनाएंगे ग़म ज़िन्दगी है अगर
कर्बला के शहीदों का सद ऐहतमाम

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