वाली भी है वसी भी बिलयकीं यूँ भी है और यूँ भी
अली ए मुर्तज़ा हादिये दीं यूँ भी है और यूँ भी
फ़ज़ाएल हों मसायब हों है मक़सद एक दोनों का
तुमहारे ज़िक्र से तबलीग़े दीं यूँ भी है और यूँ भी
फ़ज़ाएल सुनके शादाँ हों मसायब सुनके ग़मगीं हों
हमारे वास्ते खुल्दे बरी यूँ भी है और यूँ भी
फ़ज़ायल में भी अफ़ज़ल तर क़राबत में भी अक़रब तर
वालिये हक़ नबी का जॉ नशीं यूँ भी है और यूँ भी
मलक ले जाये आकर या के मौत आये नजफ़ जाकर
मेरी तक़दीर में वो सरज़मीं यूँ भी है और यूँ भी
मौहम्मद की सना हो या अली की मन्क़बत ख्वानी
नतीजा एक है तबलीग़े दीं यूँ भी और यूँ भी
वो बैठे बोरिये पर या उसे मिलजाए तख्ते ज़र
बा हर सूरत नबी का जानशीं यूँ भी है और यूँ भी
अली अकबर को रोये ग़म करे ओनो मौहम्मद का
बहन शब्बीर की मतामनशीं यूँ भी है और यूँ भी
मेहार ऊंटों की खीचें या संभाले तौक़ का लंगर
परेशां हाल जैनुल आबेदी यूँ भी है और यूँ भी
फ़ज़ाइल का सिला सिब्तैन हो या सोज़ख्वानी का
मेरी तक़दीर में खुल्दे बरीं यूँ भी है और यूँ भी