Noha

दौलत जो तुम्हारी थी लुटा आई हूँ अम्माँ
कुछ दाग़ मगर दिल पा नए लाई हूँ अम्माँ

क्या मुझको यकीं हो मुझे पहचान सकोंगी
आफत ज़दा ग़म दीदाओ दुःख पाई हूँ अम्माँ

परदेस से आई हूँ तो ख़ाली नहीं आई
सौग़ात में कुछ प्यासो के सर लाई हूँ अम्माँ

दौलत मै तुम्हारी ही लुटा कर नहीं आई
अपने भी चरागों को बुझा आई हूँ अम्माँ

जिस तरहा हुआ दीन बचा लाई हूँ लेकिन
चादर ना मगर अपनी बचा पाई हूँ अम्माँ

कूफ़े की थी शहज़ादी मगर आज हूँ क़ैदी
हर गाम पा ये सोच के थर्राई हूँ अम्माँ

जब बाज़ू बंधे याद थी भाई की वसीयत
यूँ लब पा मैं शिक़वा ना कोई लाई हूँ अम्माँ

रस्सी मेरे बाज़ू में वहाँ बाँधी गई थी
वो नील दीखनें के लिए आई हूँ अम्माँ

ये सोच के रातो की हैं जागी हुई बच्ची
ज़िन्दा मे सक़ीना को सुला आई हूँ अम्माँ

बस रोक कलम फटता है ईमान कलेजा
ये सुन के के मैं आपकी माँ जाई हूँ अम्मा

3 replies on “Daulat Jo Tumhari Thi Luta Aayi Hu Amma”

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