दौलत जो तुम्हारी थी लुटा आई हूँ अम्माँ
कुछ दाग़ मगर दिल पा नए लाई हूँ अम्माँ
क्या मुझको यकीं हो मुझे पहचान सकोंगी
आफत ज़दा ग़म दीदाओ दुःख पाई हूँ अम्माँ
परदेस से आई हूँ तो ख़ाली नहीं आई
सौग़ात में कुछ प्यासो के सर लाई हूँ अम्माँ
दौलत मै तुम्हारी ही लुटा कर नहीं आई
अपने भी चरागों को बुझा आई हूँ अम्माँ
जिस तरहा हुआ दीन बचा लाई हूँ लेकिन
चादर ना मगर अपनी बचा पाई हूँ अम्माँ
कूफ़े की थी शहज़ादी मगर आज हूँ क़ैदी
हर गाम पा ये सोच के थर्राई हूँ अम्माँ
जब बाज़ू बंधे याद थी भाई की वसीयत
यूँ लब पा मैं शिक़वा ना कोई लाई हूँ अम्माँ
रस्सी मेरे बाज़ू में वहाँ बाँधी गई थी
वो नील दीखनें के लिए आई हूँ अम्माँ
ये सोच के रातो की हैं जागी हुई बच्ची
ज़िन्दा मे सक़ीना को सुला आई हूँ अम्माँ
बस रोक कलम फटता है ईमान कलेजा
ये सुन के के मैं आपकी माँ जाई हूँ अम्मा
Last line
Ye sun ke ke main aapki ma jaai hu amma.
Thanks Ahmed, we’ve updated the noha as you’ve suggested. so please have a look on the same once again.
Thanks for uploading this noha