Zainab Suno Maqtal Se Hum

Noha

ज़ैनब सुनो मक़्तल से हम वापस नहीं आपाएगे
असबाब सब लुट जाएगा खेमे सभी जल जाएगे

दुर्रे लगा ऐगे लई
क़ैदी बनाएगे लई
बीमार की गर्दन में भी तोके गरा पहनाएगे

जब क़ाफ़िला चलने लगा
ज़ेहरा ने दी रोकर सदा
तू ग़म ना कर उम्मे रबाब असग़र को हम बहलाएगे

कुफ्फार के दरबार में
और शाम के बाज़ार में
जाएगे सब अहले हरम आबिद बहुत शर्माएगे

लूटा हुवा ये काफिला
दरबार में जब जाएगा
नेज़ो पा सर सब जाएंगे लाशें यहीं रह जाएंगे

जब भी परिंदे देखती
रोकर सकीना कहती थी
जाते हैं सब घर को फुफि हम कब मदीने जाएंगे

बस रोक ले फख्ररी कलम
घुटने लगा सीने मे दम
मजलिस मे भी कोहराम है सीनो मे दिल फट जायेगे

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