या शहे ज़मन – या शहे ज़मन
है नही कफ़न क्या करे जतन
मारना यतीमो को
डाटना यतीमो को
कर्बला मे देखा है हमने ये चलन
घर जलाये आदा ने
ज़ुल्म ढाये आदा ने
दर बदर फिराया है बाँध कर रसन
एक रात का दूल्हा
था सहारा कुबरा का
दीं पा हो गया कुर्बान दिलबरे हसन
था ख़याल हलचल में
रो रही थी आँचल में
एक शब की बेचारी हाए एक दुल्हन
रन मे हैं पड़े लाशें
कौन उनको दफनाये
जलती रेत ने सब को दे दिया कफ़न
सिर्फ घर में आबिद हैं
वो हमारे क़ाईद हैं
एक यक्को तनहा क्या करे जतन
कर्बला मे तुम हैदर
नोहा पड़ना ये जाकर
माँगना दुआए फिर कहके ये सुखन