Sheh Ke Ghazi Ka Parcham Uthate Raho

Noha

शह के ग़ाज़ी का परचम उठाते रहो
हम वफादार हैं ये बताते रहो

साल भर बाद आया है दौरे अज़ा
छाई है हर तरफ शह के ग़म की घटा
प्यासे ग़ाज़ी पा आसूं बहाते रहो

हाय सक़्क़ा तो मारा गया घाट पर
इतना सदमा हुआ टूटी शह की कमर
ग़म मानाओ सबीले सजाते रहो

मुर्तुज़ा की तमन्ना का खु हो गया
हो गया कतल साहिल पा जाने वफ़ा
उसकी यादों को दिल मे बसाते रहो

नहर पर क़ब्ज़ा करके न पानी पिया
प्यास पर उसकी रोती रही अलक़मा
मोमिनो तुम भी रोते रुलाते रहो

लश्करे शाह का वो अलमदार था
प्यासा ग़ाज़ी अली जैसा जरार था
सबर पर तुम निगाहे जमाते रहो

वो सकीना का प्यारा चचा उठ गया
प्यास भुजने का कुल आसरा उठ गया
खुश्क कूज़ो पा आंसू चढ़ाते रहो

दश्त मे घर लुटा सर से चादर छनी
हाय बिन्ते अली बे सहारा हुइ
आसुंओं जाओ नुसरत को जाते रहो

लिखा फिदवी ये नोहा जो अब्बास का
है यक़ी देंगी इसकी जज़ा सयदा
सज्द-ए-शुक्र को सर झुकाते रहो

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