कैदे सितम से छुट कर आई हूँ मेरे नाना
और दाग़ कितने लेकर आई हूँ मेरे नाना
नाना रिदाए छीनी और दरबदर फिराया
बाज़ारों शामो कुफा मे सर खुले घुमाया
हर ज़ुल्म दीं कि ख़ातिर हमको पड़ा उठाना
नाना बताऊँ क्या क्या रन मे सितम हुऐ हैं
ग़ाज़ी के कैसे मेरे बाज़ू क़लम हुऎ हैं
मुश्किल था कितना उसका ज़ी से ज़मी पा आना
कॉपी ज़मीन नाना खु आसमान उगला
सूरज भी ख़ु के आसुँ रन मे बहाता निकला
मु अपना आसूओं से उसको पड़ा छुपाना
नाना कहीं भी शिकवा मैंने किया नही है
है कौनसा सितम जो मैंने सहा नही है
बादे हुसैन मुझको इस्लाम था बचाना
अब्बास की शुजाअत अकबर की नोजवानी
क़ासिम बनेका का सेहरा प्यासों की ज़िन्दगानी
असग़र का भी तब्बसुम दींन पर पड़ा लुटाना
न महरमो की कब्रे होती न गर बराबर
नीले रसन दिखाती सर से रिदा हटाकर
हर ज़ुल्म चाहती थी मैं आपको दिखाना
मेरी हर एक मुसीबत लिखी है इसने रोकर
है शानदार मेरा महशर मे बस ये कहकर
खुल्दे बरीं मे घर एक नाना इसे दिलाना