मकतल मे यही कहती थी नादान सकीना
अब ढुंढे कहा तुम को चचा जान सकीना
मेरे लिए शाने भी कहती ज़ख्म भी खाए
इस जज़्बए ईसार के कुर्बान सकीना
आजाईये पानी के लिए अब ना कहूंगी
क्या जानिए है कितनी पशेमान सकीना
चादर छीनी फूफी की मेरे कानों से बूंदे
नाना को दिखायेगी फेटे कान सकीना
असगर से ये कहना के लिपट जाती है माँ से
जब देखे झूला तेरा सुन सान सकीना
दादी से कहो दे वो दिलासा मुझे आकर
ऐसास की मारी है परेशान सकीना
ग़मगी को अब आप के बाबा की ज़ेयारित
मुद्दत है दिल में यही अरमान सकीना