लब पा ज़ैनब के था नोहा उठो अब्बास उठो
सो चुके अब मेरे भय्या उठो अब्बास उठो
सर खुलेगा तो मेरे सर पा रिदा डालोगे
जानती हूँ मेरे कहने को नहीं टालोगे
आगई सानिये ज़हरा उठो अब्बास उठो
क़ैदखाने में भी हर लम्हा तुम्हे रोती हूँ
रोज़े आशूर से अब तक मैं नहीं सोती हूँ
जाग भी जाओ ख़ुदारा उठो अब्बास उठो
खाक अठहरा बरस का मेरा अरमान हुआ
जब सुनेगी वो शहीद असग़रे नादान हुआ
ग़म से मर जाये न सुग़रा उठो अब्बास उठो
कुछ तो पूछो के मसायब की थकन कितनी है
दर्द आखों मे मेरे दिल में चुभन कितनी है
सुन लो ये ग़म का फ़साना उठो अब्बास उठो
छोड़ कर बस गई ज़िंदा मे सकीना मुझको
कर दिया गर्दिशे हालात ने बूढ़ा मुझको
देखो लो हाल ये मेरा उठो अब्बास उठो
क़ैदखाने मे उसे शाम के खो आई हूँ
साथ मे अपने सकीना को नहीं लाई हूँ
मर गई क़ैद मे दुखिया उठो अब्बास उठो
दस्ता ग़म की सुनाने के लिए आई हूँ
पुश्त के ज़ख्म दिखाने के लिए आई हूँ
कोई तुमसे नहीं शिकवा उठो अब्बास उठो
नील बाज़ू के अगर देख लिए सुग़रा ने
और फिर मुझसे सवालात किये सुग़रा ने
मैं बताऊंगी उसे क्या उठो अब्बास उठो
है यक़ी मुझको बहुत जल्द गुज़र जाऊंगी
क़ब्र पा आपकी रोते हुए मर जाऊँगी
घर नहीं जाऊगी भय्या उठो अब्बास उठो