रोके सज्जाद से करती थीं सकीना ये कलाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
मेरे भाई मेरे बेकस मेरे मज़लूम इमाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
होके हम क़ैद यूँही चलते रहेंगे कब तक ग़म सहेंगे कब तक
कब खुलेगी ये रसन कब ये सफर होगा तमाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
रोऊँ बाबा को तो इनाम में दुर्रे पाऊं और तमाचे खाऊं
मैं वो बेटी हूँ जो ले सकती नहीं बाप का नाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
सदके कर कर के खजूरे जो ये सब फेकते हैं हम ये क्या देखते हैं
हम तो सादात हैं सादात पे सदक़ा है हराम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
किसी मंज़िल पे तरस खाएंगे हम पर ये लई कोई उम्मीद नहीं
हम ग़रीबों के मुक़द्दर में कहाँ अब आराम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
ग़ैरते नफ़्स मेरी खून रुलाती है मुझे शर्म आती है मुझे
बाल छोटे हैं छुपता नहीं चेहरा भी तमाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
ज़ब्त करने के लिए कोन सा दिल लाऊँ मैं काश मर जाऊँ मैं
औरतें देखती है तमाशा लबे बाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
अभी ज़िंदा के अंधेरों से गुज़रना है हमें वहीँ मरना है हमें
क़ैद खाने के अँधेरे भी लिखे हैं मेरे नाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम
बिन्ते शब्बीर ये नय्यर है तेरा फरयादी तू मेरी शहज़ादी
तेरी तुर्बत पे भला पहुंचेगा कब तेरा ग़ुलाम
क्या अभी दूर है शाम क्या अभी दूर है शाम