Kya Aamd-e-Hilal-e-Moharram ka Shor Hai

Marsia

क्या आमदे हिलाले मुहर्रम का शोर है
अर्ज़ो समां मैं शेवनो मातम का शोर है
फौजे मलाएका मैं इसी ग़म का शोर है
फैसले बहरे दीदये पुर नम का शोर है

सूनी है क़ब्र फातहे बदरो हुनैन की
आती है श्श्जहत से सदा शोरो शैन की

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हर जा बपा है मातमे सुल्ताने बहरो बर
काबा सियाह पोश है हज्जाज नोहा गर
है चाह मैं हुसैन की जम जम की चश्म तर
ख़म बारे ग़म से हो गयी मेहराब की कमर

सामान है मातमे शाहे आलम पनाह का
उठता है गुल ज़मीन से फ़रीदो आह का

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रो लो अज़ाए शह मैं के दर पेश है अजल
मालूम क्या है आज के जीते रहेंगे कल
इस उम्र बे मदार पा तकिया है बे महल
जायेगा कुछ न साथ लहद मे बा जुज़ अमल

यां मजलिसे अज़ा में जो आसूं बहायेंगे
इन आसुंओं की क़ब्र में लज़्ज़त उठायेंगे

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यसरिब मैं खाक उड़ती है बतहा उदास है
महबूबे ज़ुलजलाल का रोज़ा उदास है
शबीर हैं सफर मैं मदीना उदास है
घर सायें सायें करता है सुगरा उदास है

उम्मत पा शाह जाते हैं क़ुर्बान होने को
शेरे इलाह निकले हैं तुर्बत से रोने को

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