कश्ती को दीने हक़ की बचाया हुसैन ने
पैग़ाम हुर्रियत का सुनाया हुसैन ने
प्यासा ही मर चला था ये दीने मोहम्मदी
इसको रगो का खून पिलाया हुसैन ने
असग़र को दफ़न कर दिया नन्ही सी क़बर मे
चाँद अपना ज़ेरे खाक छुपाया हुसैन ने
मैदाने कर्बला मे बाहत्तर के खून से
भुझता हुआ चराग़ जलाया हुसैन ने
कट कर भी सर बुलंद था नेज़े नोक पर
इस्लाम कितना ऊँचा उठाया हुसैन ने
इस्लामियत पा कुफ्र का एक दाग यज़ीद
असगर के खून उसको मिटाया हुसैन ने
नोशा मुझे गुलमिये क़ासिम मे दे दिया
तेरा नसीब कितना जगाया हुसैन ने