कर्बला के मसाफिर हैं आये हुऐ
दाग दिल पा बहत्तर के खाये हुऐ
क़ासिमो अकबरो ओनो अब्बास भी
सो रहे हैं सरो को कटाये हुऐ
बादे असग़र किसी को न आई हँसी
मुदत्ते हो गई मुस्कुराये हुऐ
खा रहा है उसे दर्दे बे पर्दगी
एक बीमार है सर झुकाये हुऐ
शामवालो अज़ीयत न देना इन्हें
अपना घरबार सब है लुटाये हुऐ
कैदखाने मैं लैला अकेली नही
यादे असग़र है दिल से लगाये हुऐ
चले सब मदीने को अहले हरम
ज़ुल्म झेले हुऐ ग़म उठाये हुऐ
वो आज़दारे सरवर कहाँ हैं शमीम
जो हैं मक़सद को शह के भुलाये हुऐ