Karbala ka Jangal Hai Door Tak Andehra Hai

Noha

करबला का जगल है दूर तक अधेरा है
बे वतन मुसाफिर को ज़ालिमों ने घेरा है

ये हुसैन कहते थे मैं नबी का बेटा हूँ
ज़ालिमों बताओ तो क्या क़सूर मेरा है

अशक़िया भी मुह अपना फेर फेर रोते थे
बेज़बॉ ने होटों पर जब ज़बॉ को फेरा है

जल गये सभी खैमें सर पा अब यतीमों के
आसूओं की चादर है खाक पर बसेरा है

हर यज़ीद के घर में शाम हो गई शादाब
पर हुसैन के घर में आज भी सवेरा है

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