जब किसी बच्ची के रोने की सदा आती है
लाशे अब्बास तराई मे तड़प जाती है
रो के आवाज़ लगाती है कहाँ हो अम्मू
मैं भी आजाऊँ वहाँ, आप जहाँ हो अम्मू
ये सुना है के वहाँ ठण्डी हवा आती है
ठोकरे खाते हुई शाह की यतीमा पहूँची
लाशे अब्बास पे मक़्तल मे सकीना पहूँची
खून कानो से टपकता हुआ, दिखलाती है
ज़लज़ला गंजे शाहिदा मे एक आ जाता है
काँप जाती है ज़मीं, आसमान थर्राता है
नील गालो पे तमाचों के जो दिखलाती है
सर खुले खेमे से मक़्तल को सकीना जो चली
शेर को ढूंढ़ने जंगल मे सकीना जो चली
लड़खड़ाती है कभी और कभी गिर जाती है
कोई ज़ालिम से नहीं अम्मू छुड़ाने वाला
बेड़ियों में है गिरफ्तार बचाने वाला
ज़ुल्म पे शिम्रे सितमगर के वो चिल्लाती है
मेरी सांसों से धुआँ उठता है उस वक़्त क़ासीम
खून आखों से रवाँ होता है उस वक़्त क़ासीम
जब मेरी मश्के सकीना पे नज़र जाती है