जब चले यसरब से सिब्ते मुस्तफा सूए इराक़
थी डरो दीवार से पैदा सदा ए अल फ़िराक़
जद के रौज़े पर गए रुखसत को बा साद इश्तियाक़
अर्ज़ की नाना बुलाते है मुझे एहले निफ़ाक़
हो गया दरयाफ़्त ये ख़त के क़रीने से मुझे
करते हैं ज़ालिम जुदा इस दम मदीने से मुझे
देखना ये मौसमे गरमा ये बच्चे नाज़नी
धुप की शिद्दत ये रेगिस्तान और जलती ज़मीं
अब वतन मैं अपने जीते फिर के आने के नहीं
आपका रौज़ा कहीं होगा मेरा मरक़द कहीं
तफ़रीक़ा उम्मत ने डाला सर बा सेहरा हम चले
फ़ातेमा सुग़रा रहीं मरक़द के साए के तले
क़त्ल पर मेरे कमर बांधे हैं ना हक़ अश्क़िया
घर के रहने पर तलब करते हैं बैअत बे हया
हाथ से मरवान के तंग आया हूँ शाहे अम्बिया
अब मुक़र्रर मुझसे नाना यसरबो बतहा छुटा
ने मदीने में रहूँगा और ना बैतुल्लाह में
कर्बला जाता हूँ सर देने खुदा की राह में
सोच है इतना के सब अहले हराम हमराह हैं
और पहाड़ों का सफर है मंज़िले जंग गाह हैं
शोला ए आतिश से लू में गर्मतर वल्लाह हैं
खुश्क हैं तालाब सूखे इन दिनों मैं चाह हैं
हैं शजर सूखे हुए कोसों नहीं पत्ते की छाँव
मंज़िलें वीरान हैं रस्ते हैं क़रिया है ना गाँव
अपनी अपनी जा छुपे बैठे हैं सारे वहषो तैर
मैं चला हूँ इस तपिश में देखना उम्मत का बैर
ये सफर और साथ कच्चा लोग दुश्मन मुल्क गैर
मुझ पा जो गुज़रे सो गुज़रे पर रहे बच्चों की खैर
देखिये हक़ मैं मेरे क्या मरज़ीए ग़फ़्फ़ार है
फातिमा सुग़रा जुदा घर में यहाँ बीमार है
आपकी उम्मत ए नाना सताया है मुझे
दम ग़नीमत रौज़ए अक़दस का साया है मुझे
किस तपिश में घर से आदा ने बुलाया है मुझे
तुरबते आली की खिदमत से छुड़ाया है मुझे
गो जुदा होता हूँ मैं इस मरक़दे पुरनूर से
पर ज़ियारत रोज़ो शब् पढता रहूँगा दूर से