हाय सुग़रा न पूछ क्या देखा
कर्बला में तुम्हारी ज़ैनब ने
जबके शशमाहे के लगा था तीर
रह गया था तड़प के वो बशीर
हल्क़े असग़र को भी छिदा देखा
गर्म रेती पा शाने कटवाए
हाय सीने पे बर्छिया खाए
मैंने अब्बास को पड़ा देखा
अहले बैते हरम के खेमो से
मैंने घोड़ो की हाय तापों से
लाशे क़ासिम को राँधता देखा
थे मोहम्मद और औन भी बेजाँ
लाशे क़ासिम थी खून में ग़लताँ
ये भी तक़दीर का लिखा देखा
सजदे मे जब झुका सरे सरवर
शिमर लेकर बढ़ा उधर खंजर
शह का कटता हुवा गला देखा
तेरी प्यासी बहन को ज़ैनब ने
एक शब की दुल्हन को ज़ैनब ने
हाय बलवे मे बे रिदा देखा
तौक़ ज़ंजीर पहने आबिद को
तेरे बीमार भाई साजिद को
गर्म रेती पा नंगे पा देखा
रोके फ़िज़्ज़ा ये कर रही थीं बैन
हल्क़े शह कट रहा था जब हसनैन
हाय करबल में ज़लज़ला देखा
One comment(s) on “Haye Sughra Na Pooch Kya Dekha – Karbala Main Tumhari Zainab Ne”
mola salmat raakhe