हाए सकीना – हाए सकीना
मशकीज़े पा जब तीर लगा हाए सकीना
अब्बास ने हसरत से कहा हाए सकीना
मैंने तो लहू रन बहुत अपना बहाया
हर हाल मे मशकीज़े को तीरों से बचाया
फिर भी तुझे पानी न मिला हाए सकीना
ज़ख्मो से बदन चूर हुआ कट गए बाज़ू
अब मशकों अलम पर भी नही है मेरा क़ाबू
मजबूर हुआ तेरा चचा हाए सकीना
मरकद पा मुहम्मद के मे जाने नही पाई
नाना को भी दुःख अपना सुनाने नही पाई
उफ़ कर गई दुनिया से कज़ा हाए सकीना
शब्बीर ने जब भाई को मरते हुए देखा
हर सास पा आहें उन्हें भरते हुए देखा
बस होटो पे अब्बास के था हाए सकीना
कहती थी फूफी से कहाँ जाते है परिंदे
ये याद मदीने की दिलाते हैं परिंदे
रास आई न दुनिया ये तुझे हाए सकीना
जब खूनमे तर मशको अलम सामने आए
शह भाई के बाज़ू भी थे हाथोँ मे उठाए
खेमो मे हुआ शोर बपा हाए सकीना
बिजली सी गिरी ज़हनों पा तड़पा गई ग़मगीन
हर आँख पा सावन की घटा छा गई ग़मगीन
अहबाब ने जब नोहा सुना हाए सकीना