Ek beemar ka khat bap ke nam aaya hai

Noha

एक बीमार का ख़त बाप के नाम आया है
कैसी ग़ुर्बत में मोहब्बत पयाम आया है


फ़ातिमा सुगरा ने यूं ख़त मे किया है तहरीर
रक़ीबें दोशे नबी इब्ने शहे खैबर गीर
दिल बहलता ही नहीं मैंने बहुत की तदबीर

ख्वाब मे मुझ को नज़र लश्करे शाम आया है


बाबा बेचैन किये देती यादे अकबर
हाय प्यारा सा वो भया मेरा नन्हा असग़र
सूए दर जाती है यूँ अपनी हर आहट पर नज़र

जैसे लेने मुझे एक अर्श मक़ाम आया है


क्या मदीने मे नहीं लोट के आने का ख़याल
सुन रही हूँ के है परदेस बसाने का ख़याल
बाबा बतलायें अब कब है बुलाने का ख़याल

जो भी दिल मे है वो ही लब पे कलाम आया है


बाबा दुल्हन वहा कुबरा को बनाया के नहीं
ब्याह हम शक्ले पयम्बर का रचाया के नहीं
बाबा लिखना के मेरा दियान भी आया के नहीं

माँ से कह देना के बेकस का सलाम आया है


ख़त के आखिर मे यूँ बीमार ने तहरीर किया
कहना हर एक को आदाब सकीना को दुआ
चूमना मेरी तरफ से अली असग़र का गला

अपने सब छूट गए कैसा निज़ाम आया है


पढ़ के ख़त बैठ गए थाम के दिल शाहे ज़मा
और क़ासिद से ये फ़रमाया बा सद रंजो महा
लुट गया फूला फला आज मोहम्मद का जहाँ

हाय परदेस मे क्या सख़्त मक़ाम आया है

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