बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
कैसे क़ैदी थे जिन्हें क़ैद के ताले रोये
बेकसी बाप को ले आई है किस मंज़िल पर…
बरछी बेटे के कलेजे से निकाले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
कैसे क़ैदी थे जिन्हें क़ैद के ताले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
देख कर जलते हुए आले नबी के खेमे…
सुबह तलक शामें ग़रीबाँ के उजाले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
कैसे क़ैदी थे जिन्हें क़ैद के ताले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
जब सुना मारा गया पानी पिलाने वाला…
कापते हाथों मे सूखे हुए प्याले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
कैसे क़ैदी थे जिन्हें क़ैद के ताले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
जाने क्या सोच के शब्बीर बहुत देर तलक…
करके बशीर को तुर्बत के हवाले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
कैसे क़ैदी थे जिन्हें क़ैद के ताले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
भाई की लाश है और शोर यतीमो का नज़ीर…
एक बहन ऐसे मे बच्चों को संभाले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये
कैसे क़ैदी थे जिन्हें क़ैद के ताले रोये
बेड़ियां रोयी कभी पाऊँ के छाले रोये