Rukh se naqabe shab ko sahar ne jo uthaya, Akbar ne azan di
Teeron se sitamgaron ne chillon se milaya, Akbar ne azan di
Khaimon se chale farze safar padhne ko Ghazi, vo pyase namazi
Abbase alamdar ne parcham ko uthaya, Akbar ne azan di
Phailae hue daste dua hurre dilawar, kehta tha ye rokar
Phuncha de mujhe foje Hussaini me khudaya, Akbar ne azan di
Saf basta hua qatl shahe hardo sarafar, vha sham ka lashkar
Yha sibte pyamber ne musalle ko bichaya, Akbar ne azan di
Vha tashna dahanon ki hui qatl ki sazish, thi teeron ki barish
Yha Fatima ne arshe moalla ko hilaya, Akbar ne azan di
Jangal se ubharte the kisi maa ke the naale, ye naazon ke paale
Ummat ne tujhe lake museebat mein phansaya, Akbar ne azan di
Hilti thi zami girya kuna hote the Haider, rote the Pyamber
Jab noha e gham ooj ye Haider ne sunaya, Akbar ne azan di
रुख़ से नक़ाबे शब को सहर ने जो उठाया, अकबर ने अज़ां दी
तीरों को सितमगारों ने चिल्लों से मिलाया, अकबर ने अज़ां दी
ख़ैमों से चले फ़र्ज़े सहर पढ़ने को ग़ाज़ी, वो प्यासे नमाज़ी
अब्बासे अलमदार ने परचम को उठाया, अकबर ने अज़ां दी
फैलाए हुए दस्ते दुआ हुर्रे दिलावर, कहता था ये रोकर
पहुँचा दे मुझे फ़ौजे हुसैनी में ख़ुदाया, अकबर ने अज़ां दी
सफ बस्ता हुआ क़त्ल शहे हरदोसरा पर, वहाँ शाम का लशकर
यहाँ सिबते पयम्बर ने मुसल्ले को बिछाया, अकबर ने अज़ां दी
वहाँ तश्नादहानों की हुई क़त्ल की साज़िश, थी तीरों की बारिश
यहाँ फ़ातेमा ने अर्शे मोअल्ला को हिलाया, अकबर ने अज़ां दी
जंगल से उभरते थे किसी माँ के थे नाले, ये नाजों के पाले
उम्मत ने तुझे लाके मुसीबत में फँसाया, अकबर ने अज़ां दी
हिलती थी जमीं गिरया कुना होते थे हैदर, रोते थे पयम्बर
जब नौहा ए ग़म औज ये हैदर ने सुनाया, अकबर ने अज़ां दी
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﷽ جزاك اللهُ