हरम को कुश्ता ए खंजर की याद आएगी
इसी के साथ बरादर की याद आएगी
ना जाओ गंजे शहीदां की सिम्त ऐ ज़ैनब
भरे भराए हुए घर की याद आएगी
हुसैन रो दिए कहकर ये उम्मे सलमां से
जवानिये अली अकबर की याद आएगी
बहन को आख़री रुख़सत में देख लो आकर
गला कटेगा तो ख्वाहर की याद आएगी
मदीना कांप उठेगा बहन के नालों से
पहुंचके घर जो बरादर की याद आएगी
नज़र पड़ी जो कभी मां की अध खिले गुल पर
तबस्सुमे अली असग़र की याद आएगी
सुलाके क़ब्र में बेशीर को ना जाओ रबाब
खुलेगी नींद तो मादर की याद आएगी
रबाब बाली सकीना को रोएगी दिन भर
अंधेरी रात में असग़र की याद आएगी
उठेगी कोई भी मय्यत जब एहतेमाम के साथ
बहन को लाशा ए सरवर की याद आएगी
रिदा छिनेगी तो याद आएगा फुरात का शेर
रसन बंधेगी तो अकबर की याद आएगी
चलेगा दश्त से जब का़फिला असीरों का
कदम कदम पे भरे घर की याद आएगी
सुरूर रोक दी जाएगी पुरसीशे एहवार
लहद में जब ग़में सरवर की याद आएगी
हरम को कुश्ता ए खंजर की याद आएगी