सब्र कर उम्मुल बनीं तेरा पिसर शह पा फ़िदा हो गया
शुक्र कर उम्मुल बनीं हक़्क़े वफाई से अदा हो गया

शब गई आशूर की
सुबह नुमाया हुई
आ गई फौजे शक़ी
घिर गए इब्ने अली , सीना सिपर हो गया शब्बीर का

अर्ज़ की शब्बीर से
रन की रज़ा दीजिये
सुनके ये शह रो दिए
फिर कहा भैय्या मेरे, मै रहूँ तनहा ये गवारा है क्या

गाज़ी चला नहर से
मश्क़ संभाले हुए
जितने सितमगार थे
रूबरू सब आ गए, हाए जरी आशियाँ में घिर गया

फौजे सितमगार थी
जंग पा तैय्यार थी
प्यासे पा यलग़ार थी
तीरों की बौछार थी, मश्क़ को तीरो से बचाता चला

चल गई तेग़े सितम
टूटा ये कोहे अलम
हो गया बाज़ू क़लम
रह गए प्यासे हरम, तीर लगा मश्क़ पा पानी बहा

गिरके ज़मी पर कहा
आइए आक़ा ज़रा
अब ये ग़ुलाम आपका
खुल्द की जानिब चला, जाए ना ख़ेमे ये लाशा मेरा

भाई की आवाज़ पर
दौड़े शहे बहरोबर
हाथो से थामे कमर
रोते हुवे सर्बासर मुझसे मेरा भाई जुदा हो गया

रोक लो ईमा क़लम
दिल को नहीं ज़ब्ते ग़म
पाए जो मश्को आलम
दिल को हुवा महवे ग़म, कहते थे रो रो के शह भाई मेरा