Marsia

मालिके सल्तनते कूफ़ा जो मुख़्तार हुए
इन्तेक़ामे शोहदा लेने पा तैयार हुए
जितने कातिल थे वो सब शह के गिरफ्तार हुए
मोमिनो से जो लड़े कूफ़ी वो फिन्नार हुए

उसने चुन चुन के हर एक बनिए शर को मारा
खूलिओ शिम्रो सनान और उमर को मारा

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एक दिन कूफ़े के बाजार मैं ये शोर हुआ
हो गयी हज़रते सज्जाद की मक़बूल दुआ
हुर्मला कैद हुआ शुक्रे खुदा वंदे उला
लाये मुख़्तार के आगे जी उसे अहले वफ़ा

पुछा क्यों अर्शे मोअल्ला को हिलाया ज़ालिम
तीर मासूम को क्यों तूने लगाया ज़ालिम

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जो सितम तूने किये उसका मुझे हाल सुना
हाथों को जोर के तब उस सितम आरा ने कहा
तीर छै थे मेरे तरकश मैं वतन से जो चला
तीन तेरों ने तो की रन में निशाने से खता

हूँ मुकिर आले मोहमद को रुलाया मैंने
तीन तेरों को निशाने पे लगाया मैंने

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एक तो मश्क को जब लेके अलमदार चला
सूरते शेर सूए सैयदे अबरार चला
काट गए शाने जो तलवार का एक वार चला
मश्क को दाँतों से पकड़े हुए जर्रार चला

मेरी बेदाद से बच्चों ने न पाया पानी
तीर एक मार के सब मैंने बहाया पानी

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दुसरे तीर का अब हाल मैं करता हूँ बयां
लाये असग़र को जो मैदान मैं शाहे दो जहाँ
इस क़दर प्यास की शिददत थी के ऐठी थी ज़बान
उसको हाथों पा उठा कर ये किया शह ने बयां

तुमको ख़ौफ़े गजबे हज़रते क़हार नहीं
मैं खतावार हूँ बच्चा तो खतावार नहीं

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बिन्ते अहमद को न मरक़द मैं रुलाओ यारों
छोड़ो ग़फ़लत को रहे रास्त पा आओ यारों
मेरे दुखते हुए दिल को न दुखाओ यारों
थोड़ा पानी अली असग़र को पिलाओ यारों

प्यासा सब कुनबे के हमराह ये मासूम भी है
ये मुसाफिर भी है सय्यद भी है मज़लूम भी है

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मुतवज्जा ना हुआ कोई मेयाने लश्कर
तब कहा शाह ने असग़र से बा दीदये तर
मुझको देता नहीं पानी कोई ए नूरे नज़र
गो है सिन कम पा हो तुम हुज्जते खालिक के पिसार

प्यास का अपनी यक़ीन इनको दिलादो प्यारे
तुम भी नन्नी सी ज़बान अपनी दिखा दो प्यारे

مالکے سلطناتے  کوفہ  جو  مختار ہوئے
انتقامے  شوھدا  لینے  پا  تیار ہوئے
جتنے  قاتل  تھے  وہ  سب  شاہ  کے  گرفتار ہوئے
مومنو  سے  جو  لڑے  کوفی  وہ  فننار  ہوئے

اسنے  چن  چن  کے  ہر  اک  بانے  شر  کو  مارا
خولیو  شمرو  سنان  اور  عمر  کو  مارا

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ایک  دن  کوفے  کے  بازار میں  یہ  شور ہوا
ہو گیئ حزرتے  سججاد  کی  مقبول  دوا
حرملہ  قید  ہوا  شکرے  خدا  وندے الا
لاے  مختار  کے  آگے  جو  اسے  اہلے  وفا

پوچھ  کیوں  عرشے  موللہ  کو  ہلایا  ظالم
تیر  معصوم  کو  کیوں  تونے  لگایا  ظالم

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جو  ستم  تونے  کے  اسکا  مجھے  حال  سنا
ہاتھوں  کو  جوڑ  کے  تب  اس  ستم  آرا نے کہا
تیر  چھ  تھے  میرے  ترکش  میں  وطن  سے  جو چلا
تین  تیروں  نے  تو  کی  رن  میں  نشانے  سے  خطا

ہوں  مقر الے  موحمد  کو  رلایا  میںنے
تین  تیروں  کو  نشانے  پے لگایا  میںنے

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ایک  تو  مشک  کو  جب  لکی  علمدار  چلا
سورتے  شیر  سعے  سیدے  ابرار  چلا
کٹگے شانے  جو  تلوار  کا  ایک  وار  چلا
مشک  کو  دانتوں  سے  پکڑے  ہوئے  جررار  چلا

میری  بیداد  سے  بچچوں  نے  نہ  پایا  پانے
تیر  ایک  مار  کے  سب  میںنے  بہایا  پانے

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دوسرے  تیر  کا  اب  حال  میں  کرتا  ہوں بیاں
لیے  اصغر  کو  جو  میدان  میں  شاہے  دو  جہاں
اس  قدر  پیاس  کی  شددت  تھی  کے  ایٹھیے  تھی  زباں
اسکو  ہاتھوں  پا  اٹھا  کر  یہ  کیا  شاہ  نے  بیاں

تمکو  خوفے  گزبے حضرتے  قہار  نہیں
میں  خطاوار  ہوں  بچچا  تو  خطاوار  نہیں

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بنتے  احمد  کو  نہ  مرقد  میں  رلاؤ  یاروں
چھوڑو  غفلت کو  رہے  راست  پا  او  یاروں
میرے  دکھتے  ہوئے  دل  کو  نہ  دکھاؤ  یاروں
تھوڑا پانی  علی اصغر  کو  پلاؤ  یاروں

پیاسا  سب  کنبے  کے  ہمراہ  یہ  معصوم  بھی ہے
یہ  مسافر  بھی  ہے  سیّد  بھی  ہے  مظلوم  بھی  ہے

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متوججا  نہ  ہوا  کوئی  میانے  لشکر
تب کہا  شاہ  نے  اصغر  سے  با  دیدے تر
مجھکو  دیتا  نہیں پانی کوئی  اے نورے  نظر
گو  ہے  سن  کم  پا  ہو  تم  حججاتے  خالک  کے  پسر

پیاس  کا  اپنی  یقین  انکو  دلادو  پیارے
تم  بھی  نننی سی  زبان  اپنی دکھا  دو پیارے

4 replies on “Maalike Saltanate Koofa jo Mukhtaar Hue”

Mashallah Mashallah
Bayaz-e-Gham you are doing a great job, May Allah and Maula accept your work
Jazakallah, Keep do this work

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