Marsia

जब होई ज़ोहर तलक क़त्ल सीपा हे शब्बीर
ग़ैरे असग़र न रहा नूरे निगाहे शब्बीर
थी फ़क़त रूहे अली पुश्त पनाहे शब्बीर
हक़ से कहता के तू रहियो गवा हे शब्बीर

सर फ़िदा कर के शरीके शोहदा होता हूँ
आज मैं तेरी अमानत से अदा होता हूँ …


अब ना क़ासिम मेरा बाक़ी है न अकबर बाकी
ना अलमदार सलामत है ना लश्कर बाकी
भांजे हैं ना भतीजे ना बरादर बाकी
अब फ़क़त सर मेरा बाकी है और असग़र बाकी

क़त्ल असग़र हो मेरा सर भी जुदा हो जाये
इस अमानत से भी शब्बीर अदा हो जाये..


या खुदा तुझ पा मैं सदक़े मेरा लश्कर भी निसार
दिल फ़िदा , रूह फ़िदा , जान फ़िदा घर भी निसार
अली असग़र भी निसार और अली अकबर भी निसार
तुझ पा बाक़र भी फ़िदा आबिदे मुज़्तर भी निसार

मैंने जो कुछ तेरी दरगाह से पाया मौला
सब तेरी राह में खुश हो के लुटाया मौला


वो कलेजे पा धरे हाथ पड़ा हैं अकबर
हैं वो अब्बास-ए-दिलावर वो हसन का दिलबर
एक एक प्यारे को क़ुर्बान किया गिन गिन कर
की अमानत में खयानत ना ज़रा-ए-दावर

तूने दौलत जो मुझ ख़ाक नशीन को सौपी
वो अमानत तेरे बन्दे ने ज़मीन को सौपी

10 replies on “Jab Hui Zohar Talak, Qatl Sipahe Shabeer”

Wonderful initiative May Almighty bless you with eternal happiness and Immortal Success…

with love
Syed Munawwar Azim Naqvi
Guzri

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