अज़मे हुसैनी देखे ज़माना
राहे खुदा में घर का लुटाना

एक तरफ़ है दर्द की दुनियां
एक तरफ बे दर्द ज़माना

रस्मे वफ़ा अब्बास से पुछो
मश्क़ न छूटी कट गया शाना

हाए गुलुए असगरे नादा
तीरे सितम का हुआ है निशाना

ये भी है एक एजाज़े शहादत
ताज़ा है अब तक ग़म का फ़साना

सिब्ते नबी से सीख ले दुनिया
राहे ख़ुदा में घर का लुटाना

क़ैद से छूट कर अहले वतन से
कहतीं थीं ज़ैनब ग़म का फ़साना