Marsia

ए मोनीमों ये फसले गमे शेरे खुदा है
मातम के हैं दिन मोसमे फ़रयादो बुका है
रोने का है गुल कहीं आहों की सदा है
मोला के अज़ादारों मैं इक हश्र बपा है

सर पीट के दामाद का पुरसा दो नबी को
मारा है इन्हीं रोज़ों मैं ज़ालिम ने अली को


इस ज़ोर से ज़रबत सरे अक़दस पा लगायी
वो ज़ुल्म की शमशीर जबीन तक उतर आयी
मलून ने थे ज़हर में शमशीर बुझाई
गुल पड़ गया शमशीर यदुल्लाह ने खायी

ज़ख़्मी किया बाज़ू को रसूले दो सरा के
बहता है नमाज़ी का लहू घर मैं खुदा के


फरयाद है शीओं के मददगार को मारा
दुनयाए दुनी के लिए दीनदार को मारा
रांडो के यतीमों के परिस्तार को मारा
माहे रमज़ान मैं शहे अबरार को मारा

तुर्बत मैं रसूले अरबी रोते हैं हए हए
बिन बाप के सिब्तेने नबी होते हैं हए हए


ज़ेहरा के पिसार घर से चले बा दिले मुज़्तर
शब्बीर के हमराह थे अब्बास दिलावर
मस्जिद में जो दाखिल हुए रोते हुए सरवर
देखा के तड़पते हैं परे खाक पा हैदर

रोने लगे बेटे शहे वाला से लिपट कर
शब्बीर तो ग़श हो गए बाबा से लिपट कर


होश आया तो कहने लगे फरयाद खुदाया
बिन माँ के तो थे बाप का अब उठता है साया
आदा ने हमें ईद के नज़दीक रुलाया
किस शख्स ने बाबा तुम्हें ये ज़ख्म लगाया

बेटों से सुखन सब्र के फरमाते थे हज़रत
क़ातिल का मगर नाम ना बतलाते थे हज़रत


दो रोज़ तलक ग़श में रहे सरवरे आलम
बिस्तुम को हुआ जिस्म पा ज़ाहिर असरे सम
और खून न रुका ज़ख्मे सरे पाक से एकदम
इक्कीसवीं शब आयी तो बरपा हुआ मातम

दुनिया से इसी शब को सफर कर गए मोला
शियों की कमर टूट गयी मर गए मोला


اے مومنوں یہ فصل غم شیر خدا ہے
ماتم کے ہیں دن موسم فریادو بکا ہے
رونیکا ہے گل کہیں آہوں کی صدا ہے
مولا کے عزاداروں میں اک حشر بپا ہے

سر پیٹ کے داماد کا پرس دو نبی کو
مارا ہے انھیں روزوں ظالم نے علی کو


اس زور سے ضربت سر اقدس پا لگا یئ
و ظلم کی شمشیر جبیں تک اتر آی
ملعون نے تھی زہر میں تلوار بجھائی
غل پڑ گیا شمشیر یدالله نے کھآیی

زخمی کیا بازو کو رسول دو سرا کے
بہتا ہے نمازی کا لہو گھر میں خدا کے


فریاد ہے شیعو کے مدد گار کو مارا
دنیاۓ دنی کے لئیں دیندار کو مارا
رانڈوں کے یتیموں کے پرستار کو مارا
ماہ رمضان میں شہ ابرار کو مارا

تربت میں رسول عربی روتے ہیں ہے ہے
بن باپ کے سبطین نبی ہوتے ہگیں ہے ہے


زہرہ کے پسر گھر سے چلے با دل مضطر
شبیر کے ہمراہ تھے عبّاس دلاور
مسجد میں جو داخل ہوئے روتے ہوئے سرور
دیکھا کے تڑپتے ہیں پڑے خاک پہ حیدر

رونے لگے بیٹے شہ والا سے لپٹ کر
شبیر تو غش ہو گئے بابا سے لپٹ کر


ہوش آیا تو کہنے لگے فریاد خدایا
بن ماںکے تو تھے باپ کا اب اٹھتا ہے سایا
ادا نے ہمیں عید کے نزدیک رلایا
کس شخص نے بابا تمہں یہ زخم لگایا

بیٹوں سے سخن صبر کے فرماتے تھے حضرت
قاتل کا مگر نام نہ بتلاتے تھے حضرت


دو روز تلک غش میں رہے سرور عالم
بیستم کو ہوا جسم پا ظاہر اثر سم
اور خوں نہ تھما زخم سر پاک سے اکدم
اکیسویں شب آی تو برپا ہوا ماتم

دنیا سے اسی شب کو سفر کر گئے مولا
شیعوں کی کمر ٹوٹ گی مر گئے مولا

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