Marsia

अब्बास के जो नहर पा बाज़ू क़लम हुए
सदमे से इब्ने हैदरे करार ख़म हुए
सिब्ते रसूल मुरदे रंजो अलम हुए
आवाज़ दी हुसैन को मजरूह हम हुए

खूं मे तड़प तड़प के ये ग़मखार रह न जाए
ये फ़िक्र है के हसरते दीदार रह न जाए


सुनते हे इस सदा के शाकिस्ता हुई कमर
तड़पे उठे गिरे न संभाला गया जिगर
कापे जो पाऊं थाम लिया बाज़ुए पिसर
चिलाते थे कहो अली अकबर चले किधर

खुर्शीद क्यों छिपा है ये क्या वारदात है
कुछ सूझता नहीं हमें दिन है के रात है


ग़ुरबत मे लुट गया मेरा घर ऐ जवान पिसर
सीधी न होगी अब ये कमर ऐ जवान पिसर
ताज़ा है आज दाग़े पिसार ऐ जवान पिसर
काटा गया छुरी से जिगर ऐ जवान पिसर

अब्बास क्या जहाँ से गये मै गुज़र गया
भाई हुआ शहीद हुसैन आज मर गया


क़रता है अर्ज़ बाप को थामे हुऐ पिसार
दिल को ज़रा संभालिये या शाहे बहरोबर
ज़िंदा अभी है हज़रते अब्बासे नामवर
घबराए न अब है तराई करीब तर

खादिम उठाएगा जसदे पाश पाश को
चलिए हरम मे लेके बहिश्ती की लाश को


जिस दम करीब लाश के लाये हुसैन को
अब्बास जॉ बलब नज़र आये हुसैन को
जर्रार सुनके तड़पा सदाए हुसैन को
अकबर ने हाथ उठा के दिखाए हुसैन को

दो कोह ग़म के दिल पा जो एक बार गिर पड़े
पहलू मैं लाश के शाहे अबरार गिर पड़े


भाई की लाश भाई ने देखी जो खून मे तर
उमड़ा ये दिल के मुँह के करीब आ गया जिगर
बोले ये आँख खोलकर अब्बासे नामवर
अकबर संभालो किब्लए आलम को बैठकर

सड़के हज़ार जान इमामे गय्यूर के
मुझको उठाके गिर्द फिराओ हुज़ूर के


ये कहके पाए शाह की जानिब बढ़ाया सर
कापे लहू भरी हुई आँखों को खोल कर
टपके मिजासे खून के खून के कतरे इधर उधर
किस यास से हुसैन पा की आखरी नज़र

मनका जारी का ढल गया भाई की गोद में
भाई का दम निकल गया भाई की गोद में


عباس کے جو نہار پہ بازو قلم ہوئے
صدمے سے ابن حیدر کرار خم ہوئے
سبط رسول مورد رنج و محن ہوئے
آواز دی حسین کو مجروح ہم ہوئے

خون میں تڑپ تڑپ کے یہ غمخوار رہ نہ جائے
یہ فکر ہے کہ حسرت دیدار رہ نہ جائے


سنت ہی اس صدا کے شکستہ ہوئی کمر
تڑپ اٹھے گرے نہ سنبھالا گیا جگر
کانپے جو پاؤں تھام لیا بازوئے پسر
چلاتے کہو علی اکبر چلیں کدھر

خورشید کیوں چھپا ہے یہ کیا واردات ہے
کچھ سوجھتا نہیں ہمیں دن ہے کہ رات ہے


غربت میں لوٹ گیا میرا گھر اے جواں پسر
سیدھی نہ ہوگی اب یہ کمر اے جواں پسر
تازہ ہے آج داغ پدر اے جواں پسر
کاٹا گیا چھری سے جگر اے جواں پسر

عباس کیا جہاں سے گئے میں گزر گیا
بھائی ہوا شہید حسین آج مر گیا


کرتا ہے عرض باپ کو تھامے ہوئے پسر
دل کو ذرا سمبھا لئے یا شاھ بھرو بر
زندہ ابھی ہیں حضرتے عباس نامور
گھبرائے نہ اب ہے ترائی قریب تر

خادم اٹھا یگا جسد پاش پاش کو
چلئے حرم میں لیکے بہشتی کی لاش کو


جس دم قریب لاش کے لائے حسین کو
عباس جاں بلب نظر ائے حسین کو
جرار سن کے تڑپا صداے حسین کو
اکبر نے ہاتھ اٹھا کے دکھا ئے حسین کو

دو کوہ غم کے دل پہ جو اک بار گر پڑے
پہلو میں لاش کے شہہ ابرار گر پڑے


بھائی کی لاش بھائی نے دیکھی جو خوں میں تر
امڈا یہ دل کے منھ کے قریب آ گیا جگر
بولے یہ آنکھ کھول کر عبّاس نامور
اکبر سمبھالو قبلیے عالم کو بیٹھکر

صدقے ہزار جان امام غیور کے
مجھکو اٹھا کے گرد پھراو حضور کے


یہ کہکے پائے شاہ کی جانب بڑھایا سر
کاپے لہو بھری ہوئی آنکھوں کو کھول کر
ٹپکے مزہ سے خون کے قطرے ادھر ادھر
کس یاس حسین پہ کی آخری نظر

منکا جری کا ڈھل گیا بھائی کی گود میں
بھائی کا دم نکل گیا بھائی کی گود میں

4 replies on “Abbas (A.S) kay jo neher paa, bazu qalam huay”

सबसे पहले तो हम आपके शुक्रगुज़ार है कि आपने अपना क़ीमती वक़्त बॉयज़-इ-ग़म की दिया। लेकिन लफ्ज़ शाकिस्ता ही लिखा है शायर ने, क्यूंकि शिकस्ता के माना हरे हुए से हैं.

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