बोली जैनब वतन मैं नहीं जाउंगी
क़ब्रे शेह की मुजाबीर ही बन जाउंगी
क़ैद खाने में तुर्बत से आई सदा
खाक पर ऐ फूफी मैं न सो पाऊँगी
जिस घडी मेरा अब्बास रन को चला
सोचा कैसे ये चादर बचा पाऊँगी
एक झुला जला दो बालियाँ साथ में
ये अमानत मदीने को ले जाऊँगी
सोई बच्ची मेरी हाए ज़िन्दान में
अब तो ख़वाबो में लोरी सुना पाऊँगी
कर्बला में कटा सर मेरे भाई का
कैसे अहले वतन को ये बतलाऊँगी
अश्क आखों से जारी है हसनैन के
खुल्द में एक मकान इस को दिलवाऊँगी